भक्ति भजन श्री गणेश चालीसा (Shri Ganesh Chalisa) में श्री भगवान गणेश के गुणों का गुणगान किया जाता है। यह दिव्य भजन अवधी भाषा में लिखा गया है, जो पुरानी भारतीय भाषा है। जो लोग नियमित रूप से इस दिव्य गणेश चालीसा का पाठ करते हैं, उन्हें अपने आसपास के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या से प्रतिरक्षित कहा जाता है। यह जानने के बाद कि भगवान गणेश भक्त की सभी समस्याओं और दुखों को दूर करते हैं, हम श्री गणेश चालीसा पढ़ने के अतिरिक्त लाभों पर चर्चा करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। प्रार्थना करके और इसे हर दिन पढ़कर।
श्री गणेश चालीसा: Shri Ganesh Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गणपति सद गुण सदन, कवि वर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरि जालाल॥
श्री गणेश चालीसा ॥ चौपाई ॥
- जय जय जय गणपति गण राजू। मंगल भरण करणशुभः काजू॥
- जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धिविधाता॥
- वक्र तुण्ड शुचिशुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
- राजत मणिमुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
- पुस्तक पाणिकुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥5॥
- सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
- धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता॥
- ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे॥
- कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥
- एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥10॥
- भयो यज्ञ जबपूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुमधरि द्घिज रुपा॥
- अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥
- अति प्रसन्न है तुमवर दीन्हा मातु पुत्र हित जोतप कीन्हा।
- मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला बिना गर्भ धारण, यहि काला।।
- गणनायक, गुण ज्ञान निधाना पूजित प्रथम, रुप भगवाना॥15॥
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- अस कहि अन्तर्धान रुप है पलना पर बालक स्वरुप है।।
- बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुखनहिं गौरि समाना॥
- सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
- शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुतदेखन आवहिं ॥
- लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
- निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
- गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
- कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
- नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
- पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥25॥
- गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
- हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
- तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
- बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
- नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥30॥
- बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
- चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई॥
- धनि गणेश कहि शिव हियहरषे। नभते सुरन सुमन बहु बरसे॥
- चरण मातु-पितु केधर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
- तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥35॥
- मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
- भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, क करा, दुर्वासा॥
- अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥
- श्री गणेश यह चालीसा। पाठ करैकर ध्यान॥
- नितनव मंगल गृहबसै। लहे जगत सन्मान॥40॥
दोहा
सम्वत अपन सहस्त्रदश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगलमूर्ति गणेश॥
श्री गणपति बप्पा मोरया
श्री मंगलमूर्ति मोरया
श्री गणपति बप्पा मोरया।
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